भारतीय रिजर्व बैंक ने 1938 में 10,000 रुपये का नोट जारी किया था. अंग्रेजों ने आठ साल बाद यानी 1946 में इस करंसी नोट को बंद कर दिया. 1954 में आजादी के बाद आरबीआई ने एक बार फिर 10 हजार रुपये का नोट जारी किया.
नई दिल्ली. समय बड़ा बलवान है, ये कब किस करवट बदल जाए, कोई नहीं जानता. यह कहावत भारत की मुद्रा प्रणाली पर भी सटीक बैठती है. भारतीय मुद्रा प्रणाली में कई तरह के नोट आए और समय के साथ विदाई ले ली. नोटबंदी के बाद आया आया 2,000 रुपये के नोट को 19 मई, 2023 को RBI ने बाजार से बाहर करने का फैसला ले लिया. भारत में नोटबंदी कोई पहली बार नहीं हुई है. ऐसा कई बार हो चुका है. आपको जानकार हैरानी होगी कि एक समय था जब 5,000 और 10,000 रुपये के नोट भी भारत की वित्तीय व्यवस्था का हिस्सा थे. 10 हजार का नोट तो भारत में 40 साल तक चला. लेकिन, वक्त के साथ इसे भी विदाई लेनी ही पड़ी.
‘बड़े काम के लिए बड़ा नोट’ की धारणा के साथ अंग्रेजों ने 1938 में 10,000 रुपये का नोट जारी किया इसे भारतीय रिजर्व बैंक ने ही छापा था. यह नोट अपने समय का ही नहीं भारतीय करंसी के इतिहास का सबसे बड़ा मूल्य का नोट था. मुख्य रूप से बड़े व्यापारिक लेन-देन के लिए इसका इस्तेमाल होता था. मतलब स्वतंत्रता से पहले आम आदमी की जेब में चवन्नी ही भले न हो, लेकिन व्यापारियों के हाथों में 10 हजार रुपये का नोट देखने को मिलता था.
1946 में कर दिया गया बंद
अंग्रेजों ने 8 साल में ही 10 हजार रुपये के नोट से तौबा कर ली और जनवरी 1946 में ब्रिटिश सरकार ने इस नोट को बंद करने का फैसला लिया. काले धन और जमाखोरी को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया. द्वितीय विश्व युद्ध में कालाबाजारी और जमाखोरी चरम पर थी. भारत भी इससे अछूता नहीं था और इसने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था. इसे रोकने को जो कदम उठाए गए उनमें दस हजार रुपये के करंसी नोट को बंद करने का निर्णय भी शामिल था.
1954 में फिर आया बाजार में
बंद होने के आठ साल बाद ही यानी 1954 में 10,000 रुपये की फिर से वापसी हो गई. स्वतंत्र भारत में 10 हजार नोट के साथ ही पांच हजार रुपये के नोट का प्रचलन शुरू हुआ. लेकिन, पहले की तरह ही इन दोनों ही बड़े नोटों आम जनता के लिए कोई ज्यादा फायदेमंद नहीं थे. ये नोट आम जनता के बीच बहुत कम इस्तेमाल होते थे और कालाबाजारी और धन्नासेठ ही इनका ज्यादा इस्तेमाल करते थे.
1978 में समय ने फिर ली करवट
1978 में भारत में प्रधामंत्री मोरारजी देसाई कालाबाजारी और जमाखोरी को समाप्त करने के अभियान में जुटे हुए थे. उन्हें अहसास हुआ कि कालाबाजारी के लिए पांच हजार रुपये और दस हजार रुपये के नोट का खूब इस्तेमाल हो रहा था. फिर क्या था. उन्होंने 5,000 और 10,000 रुपये के नोटों को फिर से बंद करने आदेश दे डाला ताकि कालाबाजारी जैसी “बुराई की जड़ को काटा जा सके.” RBI के आंकड़ों के मुताबिक, 1976 में कुल नकदी का केवल 2% ही इन उच्च मूल्य के नोटों में था. इसके बाद फिर कभी भारत में 10 हजार रुपये के नोट की वापसी नहीं हुई. लेकिन कुल मिलाकर 32 साल तक यह नोट भारतीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा रहा.
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FIRST PUBLISHED : September 29, 2024, 15:24 IST