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‘Shoorveer’ Review: ‘शूरवीर’ का पहला सीजन देखना बड़े ही शौर्य का काम है – read the full review of first season of shoorveer in hindi entpks


‘Shoorveer’ Review: जैसे स्पोर्ट्स बायोपिक की कहानी में नवीनता ढूंढना अपराध है, वैसे ही आर्मी पर बनी किसी भी वेब सीरीज में नवीनता की अपेक्षा करना जुर्म ही है. आर्मी की कहानी पर आधारित फिल्म हो या वेब सीरीज, इसमें कुछ तत्व तो तयशुदा होते ही हैं. एक ऐसा अफसर जो अपना आखिरी मिशन हार चुका है, या जिसके अंतर्मन पर एक गलत निर्णय का बोझ हो. अचानक से देश पर एक ऐसे संकट का आना जिस से बचने के लिए सिर्फ उसी अफसर की ज़रूरत होती है. सरकार उस अफसर को पूरी छूट देती है कि वो जो चाहे कर सकता है लेकिन उसे देश को बचाना ही है.

अफसर भी छांट-छांटकर ऐसे नमूने ढूंढता है जो कि देश को विनाश की कगार से बचा लाते हैं. इसमें एकाध मुसलमान सैनिक भी रखा जाता है ताकि धार्मिक एंगल कवर कर सकें. दुश्मन अक्सर पाकिस्तान ही होता है. दुश्मन देश के सैनिक अक्सर मूर्ख और बिना ट्रेनिंग के नज़र आते हैं क्योंकि उनका काम भारत के सैनिकों की गोलियों से मरना होता है. अगर वायुसेना हो तो एलओसी भी होगी और हमारे सैनिक उस सीमा को पार कर के ऑपरेशन को अंजाम भी देंगे और ज़िंदा लौट आएंगे. बस हीरो के ज़िंदा होने का पता सबसे आखिर में चलता है. इसी मिज़ाज की कहानी पर डिज्नी+ हॉटस्टार का एक बहुत महंगा सा शो रिलीज़ किया गया है जिसका नाम है शूरवीर. देशभक्ति की भावना इस तरह की सीरीज या फिल्म्स को देखने के लिए प्रेरित करती तो हैं लेकिन आखिर में तो अच्छी कहानी ही सीरीज की सफलता का मूल मंत्र है. शूरवीर के पहले सीजन में 8 एपिसोड हैं और इन्हें पूरा देखने का अर्थ है शूरवीर होना.

शाहरुख़ खान की फौजी से लेकर हाल ही में सोनी लिव पर रिलीज़ अवरोध 2 में मामला और फार्मूला इसी तरह का होता आया है. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जितनी भी फिल्में या वेब सीरीज आयी हैं, सब की सब एक सरकारी विज्ञापन की तरह ही लगने लगती हैं. शूरवीर में भी ऐसा ही कुछ होता है. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मिलिंद फणसे (मकरंद देशपांडे) प्रधानमंत्री के सामने पाकिस्तान द्वारा किये गए एक आतंकी हमले की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि एयरफोर्स के ग्रुप कप्तान रंजन मलिक (मनीष चौधरी) के प्रस्ताव ऑपरेशन हॉक को अनुमति दी जाये. हॉक में आर्मी, एयरफोर्स, नेवी और स्पेशल फ़ोर्स के सबसे बेहतरीन सैनिकों को शामिल किया जायेगा और उन्हें देश की फर्स्ट रेस्पॉन्स यूनिट बनाया जाएगा. प्रस्ताव पर मंज़ूरी मिलती है और अलग अलग कैंडिडेट्स आना शुरू होते हैं.

एक हुकुम न मानने वाला पायलट, एक उसका मुसलमान साथी, एक कमांडो, एक हेलीकॉप्टर पायलट और ऐसे ही कुछ सैनिक आ कर हॉक समूह बनाते हैं. इसके बाद की कहानी पूरी तरह से देखी भाली है. पाकिस्तान का एक पूर्व जनरल (आरिफ ज़करिया) भारत पर हमला करना चाहता है और पाकिस्तान का एक जासूस भारत की सुरक्षा में सेंध लगाकर मिसाइल सिस्टम के कोड चुराता है. विदेश से आयातित अत्याधुनिक और नए लड़ाकू विमानों का ज़खीरा, हॉक टीम को दिया जाता है जिसमें एक टेक्निकल गड़बड़ पकड़ी जाती है. हॉक टीम पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेरने के लिए अपनी टीम को भेजती है तो एक हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है और उसका पायलट (जो कि मुसलमान होता है) पकड़ा जाता है. बची हुई हॉक टीम जांबाज़ी का परिचय देती है और पाकिस्तान के प्लान्स को चौपट कर देती है, आरिफ ज़करिया मारा जाता है और युद्धबंदी पायलट को भारतीय हॉक टीम छुड़ा के ले जाती है.

सब कुछ प्रेडिक्टेबल है सिवाय एक तथ्य के. इस सीरीज को बनाने में बहुत पैसा खर्च किया गया है. पहला ही सीक्वेंस फाइटर पायलट द्वारा एक प्लेन को क्रैश होने से बचाने का है. बहुत अच्छा ओपनिंग सीक्वेंस हैं. उम्मीद बंधती है. आपको अंग्रेजी फिल्म “टॉप गन” के कई सारे सीन और सीक्वेंसेस याद आएंगे. मगर फाइटर पायलट विराज के रोल में टॉम क्रूज नहीं हैं बल्कि अरमान रल्हन (फिल्म निर्माता ओपी रल्हन के पोते) हैं. अरमान एक पक्के फाइटर पायलट लगते हैं, उनकी पर्सनालिटी भी शानदार है और अभिनय भी ठीक कर लेते हैं. समस्या उनके रोल की है. दूसरी भूमिका में एक बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक आदिल खान जिन्हें हम पहले स्पेशल ऑप्स 1.5 में देख चुके हैं. उनकी आवाज़ भी दमदार है और उनका रोल छोटा लेकिन प्रभावी है. शूरवीर की कहानी लिखी है बृजेश जयरामन ने जिनकी लिखी वेब सीरीज अवरोध कुछ समय पहले ही रिलीज़ की गयी है. इसका स्क्रीनप्ले लिखा है सागर पंड्या (टेस्ट केस) ने डायलॉग हैं निसर्ग मेहता (होस्टेजेस, कालर बॉम्ब) के. बृजेश और सागर ने आर्मी पर बनी वेब सीरीज पहले भी लिखी हैं तो उनके लिखने में रिपीटेशन साफ़ देखा जा सकता है.

किरदारों को बैकस्टोरी भी लगभग पुरानी ही है. गलतियों के लिए लेखक मण्डली को माफ़ करना हमेशा ही अनुचित होता है. शूरवीर में हॉक टीम बनायीं जाती है क्योंकि आर्मी और एयरफोर्स में कोई तालमेल नहीं होता लेकिन पूरी हॉक टीम ज़्यादातर हवाई जहाज पर ही केंद्रित है. आर्मी के थोड़ा सा और नेवी का तो कोई रोल ही नहीं है. रंग दे बसंती जैसा एंगल भी है जिसमें पायलट के पिता से उसकी बनती नहीं है और पिता डिफेन्स कॉन्ट्रैक्टर हैं. सुप्रसिद्ध अभिनेत्री रेजिना कैसेन्ड्रा की एक बैकस्टोरी है जिसमें वो अपने दिवंगत पायलट बॉयफ्रेंड को प्लेन क्रैश के केस में निर्दोष साबित करना चाहती है. एक पायलट की छोटी बेटी है मगर बीवी नहीं है तो उसका भी रोमांटिक एंगल है. कुल जमा फार्मूला इतने हैं कि दर्शक ठग लिए जाते हैं.

तन्वी पाटिल की प्रोडक्शन डिज़ाइन इतनी कच्ची है कि ग्राउंड कॉम्बैट के दृश्य नकली लगते हैं. प्रतीक देवरा की सिनेमेटोग्राफी में सिर्फ हवाई जहाज के शॉट्स अच्छे से लिए गए हैं. सीट इजेक्शन का शॉट बहुत नकली लगता है. पाकिस्तान के सैनिकों की भारतीय सेना की गोलियों से मरने की ललक देख कर सिनेमेटोग्राफर पर गुस्सा आता है. एडिटर शक्ति हसीजा इस वेब सीरीज को संभालने में ही व्यस्त नज़र आये इसलिए एडिटिंग भी कुछ खास नहीं निकली.

एक तरफ द फॅमिली मैन, सीज, स्पेशल ऑप्स या उरी जैसे प्रोडक्शंस देखने को मिलते हैं तो लगता है कि अब शायद भारत में भी इंटरनेशनल लेवल का काम देखने को मिलेगा. तकनीकी स्तर पर तो शायद ये हो भी जाए लेकिन कहानी में फार्मूला से मुक्ति कब मिलेगी ये पता नहीं है. शूरवीर पूरा देखने तो शौर्य का काम है. परिवार के साथ इसे देखा भी जा सकता है लेकिन इसकी पटकथा इतनी गड्डमड्ड है और कई फॉर्मूले और पड़ गए हैं कि देखने वाले को कुछ भी होने से पहले सब पता होता है. धैर्य और शौर्य हो तो देखे लीजिये. वैसे नहीं भी देखेंगे तो कुछ दुख नहीं होगा.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

शहजान शेख/5

Tags: Web Series



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